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Tuesday, March 31, 2015

ईमानदारी का फल


शिवगढ़ के महाराज शिवसेन सिंह जब बूढ़े हो गए। सेन को अपनी राज गद्दी सौंप कर पर्वतों पर जाकर तपस्या करने का मन बनाया। महाराज जाने से पूर्व मिथलापुरम की राजकुमारी तिलोत्तमा से सागर शिवसेन का विवाह करके पिता के महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से मुक्त हो लिये।
राजकुमारी तिलोत्तमा बहुत सुन्दर एवं सुशील थी। राजा सागर शिवसेन अपार सुंदर पत्नी पाकर गद्गद् हो उठे। रानी तिलोत्तमा को फूल-पौधों और बाग-बगीचों से बहुत प्रेम था। वह सुबह-शाम अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में सैर करने जाती और सुन्दर फूलों को बहुत प्यार करती। बगीचे के बीच में एक सुन्दर तालाब था। उसमे सुन्दर-सुन्दर कमल के फूल खिले थे। तालाब में एक सुन्दर नाव भी थी, जिस पर रानी बैठकर जल क्रीड़ा करती और तालाब के शीतल जल में स्नान करती।
एक रोज रानी तिलोत्तमा सखियों के संग बगीचे में घूमती हुई जब थक गई तो उन्हें स्नान करने का मन हुआ। उन्होंने अपने कपड़े और जेवर एक पेड़ की डाली पर रखकर तालाब में उतर गई। इसी बीच आकाश मार्ग से उड़ते हुए कौओं में से एक की नजर चमकते जेवर पर पड़ी। सुन्दर भोज्य पदार्थ समझकर एक कौआ पेड़ की डाली पर रखे एक हार को अपनी चोंच में उठाया और उड़ गया।
स्नान आदि से निवृत्त होकर रानी कपड़े पहनने लगी तो उसमें एक हार नहीं था। रानी के तो होश उड़ गए। वह हार कोई मामूली नहीं था। वह नौलखा था जिसमें तमाम कीमती हीरे-जवाहरत गूंथे थे। उसकी चमक ऐसी थी कि सूर्य भी शर्मा जाए।
रानी सहित तमाम सखियां नौलखा हार खोजते-खोजते थक गईं पर हार नहीं मिला। रानी बेहद उदास हो गई। नौलखा हार रानी का सबसे प्रिय था। जब यह खबर राजा को लगी वे भी चिंतित हो गए। उन्होंने फौरन उस हार को खोज निकालने के लिए चारों तरफ विश्वस्त सिपाहियों को भेजा। हार के गुम हो जाने से रानी ने खाना-पीना छोड़ दिया। राजा ने रानी को समझाया कि वह दूसरा हार बनवा देंगे।
रानी रोआंसी होकर बोली, पर वह हार मुझे बहुत प्रिय था। वह जब तक नहीं मिलेगा मुझे चैन नहीं मिलेगा। रानी का हंसता-मुसकराता चेहरा निस्तेज हो गया। रानी के हठ से राजा सागर शिवसेन बेहद चिंतित हो उठे। राजा के सिपाहियों ने पूरे राज्य में ढूंढ़ आए पर नौलखा हार का कहीं पता नहीं चला। राज्य के कोने-कोने में नौलखा हार की चर्चाएं होने लगीं। रानी की खराब हालत सुनकर समस्त प्रजा गण भी चिन्तित हो उठे।
रानी को महाराज ने कई कीमती-कीमती हार दिखाए पर उनकी तो एक ही रट थी। जब तक वह नौलखा हार नहीं मिल जाता, वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। अब तो राजा को हार से अधिक रानी के स्वास्थ की चिन्ता होने लगी। राजा ने अपने विश्वस्त गुप्तचरों को भी आदेश दिया कि उस नौलखा हार को हर हालत में पता लगाए।
राज्य के सारे गुप्तचर एवं सिपाहियों ने चप्पा-चप्पा छान मारा पर वह नौलखा हार नहीं मिला।
उस राज्य में एक गरीब लकड़ी काटने वाला था। वह घने जंगलों में जाकर सूखी लकड़ी काट कर लाता और उसे बेचकर अपने परिवार का पेट पालता था। उसके परिवार में पत्नी के अलावा दो बच्चे थे। लगातार कई रोज से मूसलाधार बारिश होने की वजह से वह न जंगल जा सका था इसलिए वह परेशान था। घर में खाने-पीने की कोई वस्तु नहीं थी। बच्चे भूख से बिलख रहे थे। गोनू लकड़हारा परेशान हो उठा। बादल के छटते ही गोनू कुल्हाड़ी लेकर जंगल में जा पहुंचा। पर वहां तो सारी लकड़ियां गीली थीं। वह उदास हो गया कि आज भी घर में रोटियां नहीं बनेंगी। बच्चे भूखे सो जाएंगे। यहीं सोचता-विचारता वह घने जंगल में पहुंच गया।
तभी उसकी नजर एक घने पेड़ पर पड़ी वहां की जमीनें सुखी थीं। वह सूखी लकड़ी की लालच में आंखें फाड़-फाड़ कर पेड़ के ऊपर देख रहा था। वहां एक घोंसला था। घने पेड़ की वजह से डालियों पर बरसात का असर नहीं हुआ था। वह पेड़ पर चढ़ गया। घोंसले के पास ही एक सूखी टहनी दिखाई दी। गोनू की आंखें खुशी से चमक उठीं। वह फौरन कुल्हाड़ी निकालकर सूखी टहनी को काटना शुरू किया तभी उसकी नजर एक घोंसलें पर पड़ी। वहां कोई वस्तु चमक रही थी। गोनू ने हाथ बढ़ाकर उस चमकती वस्तु को उठाया। वह एक हार था। गोनू ने उसे लेकर अपनी जेब में डाल लिया। लकड़ी काटकर गट्ठर बनाया और बाजार में बेच दिया।गोनू ने बाजार में कई लोगों के मुंह से रानी के हार गायब हो जाने की बातें सुनी। उसे ऐसा लगा हो न हो वह हार रानी का ही होगा। वह काफी सोच-विचार कर राजमहल की ओर चल पड़ा। उसने सोचा की अगर हार के संबंध में उसने किसी से बात की और अगर वह नौलखा हुआ तो लोग उसे मारकर हार उससे छीन लेंगे। और तो और रानी की बीमार होने की खबर सुनकर गोनू परेशान हो उठा था। वह तेज-तेज कदमों से चलकर घर पहुंचा। बाजार से खरीद कर लाए आटे और दाल पत्नी को दिया।
पत्नी ने रोटियां बनाकर सबको खिलाईं। गोनू भी रोटियां खाकर सोने का उपक्रम करने लगा पर नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। उसने सोने का बहुत प्रयास किया पर बार-बार उसे कीमती हार और रानी के अस्वस्थ होने की खबर से परेशान थी। खैर सुबह हुई। वह झटपट तैयार होकर हार को संभाल कर एक झोली में रख लिया और राजमहल को रवाना हो गया।
गोनू शाम होते-होते राजमहल पहुंचा। उसने अपने आने का प्रयोजन बताते हुए राजा से मिलने की इच्छा प्रकट की। प्रहरी ने तत्काल उसे राजा के पास ले गया। गोनू ने शुरू से अंत तक की कहानी सुनाते हुए राजा को वह हार सौंप दिया।
राजा ने वह हार देखते ही पहचान लिया कि रानी का यही नौलखा हार है। हार मिलने की खबर सुनते ही रानी दौड़ती हुई आई। हार देखकर खुशी मग्न हो उठी। राजा को गोनू की बातें सही लगी। अवश्य इसे घोंसला में मिला होगा। कोई पक्षी आदि भोज्य पदार्थ समझ कर ले उड़ा होगा। राजा गोनू की ईमानदारी पर बहुत प्रसन्न हुआ तथा उसे राजकोष से हजार असर्पिफयां देने की घोषणा की।
इस तरह ईमानदारी से गोनू की निर्धनता जाती रही और असर्पिफयां लेकर अपने घर लौट आया।
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